कुछ प्रमुख बातें जो गीता में कही गई है
गीता का दूसरा नाम गीता उपनिषद है श्रीमद्भागवत गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं गीता हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक मानी जाती है गीता में हर मनुष्य के सीखने के लिए महत्वपूर्ण नीतियां बताइए है हर तबके के बारे में इसमें विस्तार से बताया गया है।
- इसको जब कोई बुजुर्ग व्यक्ति पढता है तो गीता उसको मृत्यु का सही अर्थ व मोक्ष प्राप्ति के बारे में बताती है।
- इसको को जब कोई जवान व्यक्ति पढता है तो यह उसको जीवन जीने का सही तरीका बताती है।
- इसको को कोई व्याकुल व्यक्ति पढता है तो उसको सही रास्ता जानने के लिए बताती है।
- इसको को कोई अमीर व्यक्ति पढ़ता है तो यह उसको दया व सहानुभूति सिखाने का काम करती है।
- इसको को अगर कोई कमजोर व्यक्ति पढ़ता है तो यह उसको शक्ति व सामर्थ्य पाने का रास्ता बताती है।
- इसको अगर कोई ताकतवर व्यक्ति पढ़ता है तो यह उसको अपनी ताकत को सही दिशा देने के लिए रास्ता बताती है।
- कोई अशांत व्यक्ति इसको पढ़ता है तो उसको मन की शांति वाले रास्ते बताती है।
- अगर कोई पापी इसको पढ़ता है तो उसको यह प्रायश्चित का रास्ता बताती है।
- यदि कोई भटका हुआ मनुष्य को पढ़ता है तो यह उसको सही मार्गदर्शन देती है।
गीता एक अथाह सागर है जिसकी एक बूंद भी मनुष्य को मिल जाए तो वह भाग्यशाली बन जाता है इसके ज्ञान को यदि व्यक्ति आत्मसात कर ले तो उसको मोक्ष मिलना तय होता है वह इन जन्म मृत्यु के चक्कर से मुक्ति पा लेता है और प्रभु के चरणों में उसका निवास हो जाता है।
गीता के अनुसार जीवन की अवधारणा
श्री कृष्ण नहीं कहते कि अपना काम छोड़कर केवल भगवान का नाम लेते रहें भगवान कभी भी किसी अव्यावहारिक बात की सलाह नहीं देते हैं गीता में लिखा है बिना कर्म के जीवन बन नहीं सकता कर्म से जो मनुष्य को सिद्धि प्राप्त होती है वह तो सन्यास से भी नहीं मिल सकती इसलिए जीवन की अवधारणा यही है कि कर्म किए जाओ फल की इच्छा मत रखो।

गीता के अनुसार धर्म क्या है?
धर्म का तात्पर्य है किसी का अस्तित्व किससे है जैसे सूर्य का धर्म पूरे जगत को प्रकाश देना है अग्नि का धर्म उष्णता प्रदान करना है चांद का धर्म शीतलता देना है लेकिन यहां एक बात जानने की है कि धर्म का अर्थ साधुदा या नैतिकता नहीं है वरन अपने सच्चे स्वरूप को पहचान कर उसके अनुसार ही नैतिकता करना है अतः हम यही कह सकते हैं की गीता के अनुसार मनुष्य का धर्म मानवता है।
गीता अनुसार प्रेम क्या है?
श्री कृष्ण प्रेम के बारे में कहते हैं कि प्रेम जीवन का आधार है जिसके जीवन में प्रेम है उसके जीवन में शांति ही शांति है यदि प्रेम है तो थोड़े में भी संतुष्टि है प्रेम में ही सब कुछ है यदि आप में प्रेम उपस्थित है तो आप आनंद से भरे हुए हैं आपको किसी चीज की इच्छा नहीं होती।
गीता के अनुसार जीवन क्या है?
भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि सब कुछ एक कारण या अच्छे कारण से होता है तथा जीवन में जो कुछ भी होता है अच्छे के लिए ही होता है हम सभी ईश्वर की संतान हैं यह संसार उसी के द्वारा शासित है हमें उसके शासन पर उंगली नहीं उठानी चाहिए जो ईश्वर ने आदेश दिए हैं हमको वह पूरे करने चाहिए।
श्रीकृष्ण के अनुसार इच्छा क्या है
श्री कृष्ण के अनुसार इच्छा एक उम्मीद है जो पूरी भी हो सकती है और नहीं भी यह इच्छा कैसी भी हो सकती है वासना, ईर्ष्या, लालच उन सभी स्वादिष्ट घातक पापों की इच्छा हो सकती है जिन को सही नहीं माना जाता श्री कृष्ण यहां सभी घातक पापों की इच्छा की बात कहते हैं।
श्री कृष्ण ने आत्मा के बारे में क्या कहा है?
आत्मा अमर अविनाशी है जिसे कोई भी शस्त्र काट नहीं सकता है पानी इसे गला नहीं सकता है अग्नि इसे जला नहीं सकती है तथा वायु इसे सोंख नहीं सकती है यह तो सिर्फ कर्मफल के अनुसार एक शरीर से दूसरे शरीर में भटकती रहती है गीता सार में श्री कृष्ण भगवान कहते हैं कि प्रत्येक इंसान के लिए जीवन मरण को समझ लेना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि जिस इंसान ने जन्म लिया है उसका इस संसार को छोड़कर जाना तय है यह इस दुनिया का अटल सत्य है।
भगवत गीता के अनुसार मनुष्य के जीवन में दुख क्या है?
संसार में दुख का एकमात्र कारण है कि हमने आत्मा के स्वरूप को नहीं समझा हम आत्मा को लेकर अज्ञानी है हम प्रिय जनों की मृत्यु की आशंका से भयभीत हो जाते हैं हमने यहां जो भी अर्जित किया उसकी हानि की शंका हमारे दिल में चलती रहती है जो हमारी चेतना को स्वतंत्र नहीं होने देती।
मनुष्य दुखी अपने कर्मों के कारण होता है जो पूर्व जन्म में हमने किसी को दुख पहुंचाया होता है वह कर्म तथा इस जन्म में किए हुए कर्म जो प्राय साथ- साथ ही मनुष्य को इसी जन्म में भोगने पड़ते हैं।
गीता के उपदेशों से मनुष्य को क्या करना चाहिए
गीता के उपदेशों के जरिए मनुष्य अपने जीवन की सारी मुश्किलों को दूर कर सकता है इन उपदेश में कहा गया है कि भविष्य की चिंता किए बिना जो आप काम कर रहे हैं उसे पूरी दृढ़ता से करते रहना चाहिए आप मंजिल को प्राप्त होंगे आप सिर्फ कर्म पर ध्यान दें।
गीता का सबसे अचूक उपदेश क्या है?
आपको जो कर्म सौंपा गया है वह आप हमेशा करें बिना किसी रूकावट के करें लेकिन उसके फल का त्याग कर दें उसकी इच्छा ना रखें अनासक्त रहो तथा कर्म करो इनाम और सम्मान की कोई इच्छा मत रखो श्री कृष्ण ने कहा है कि मनुष्य को उसके द्वारा किए गए कर्म के अनुसार ही फल प्राप्त होते हैं इसलिए मनुष्य को हमेशा सत्य कर्म करने चाहिए जो कर्म मनुष्य करता है वह वापस लौट कर जरूर आता है गीता सिखाती है कि सभी रिश्ते नातों से ऊपर उठकर व्यक्ति को सिर्फ अच्छे कर्म और सत्य की लड़ाई के ऊपर ही ध्यान देना चाहिए हमेशा सत्य के साथ रहना चाहिए।
गीता में हमारे पूरे शरीर के बारे में क्या कहा गया है?
इसमें शरीर को रथ कहा गया है और इंद्रियां इस के घोड़े बताए गए हैं मन को सारथी और आत्मा को स्वामी कहा गया है शरीर वही कुछ करता है जिसका मन निर्देश देता है मन जिधर लगाम खींचता है शरीर में मन के घोड़े उसी दिशा में दौड़ लगाते जाते हैं अतः कहा गया है कि मन को स्थिर रखें मन को अपने काबू में रखें।
भगवत गीता के अनुसार भक्ति किसकी करनी चाहिए?
वेद पुराणों तथा गीता से यह सिद्ध होता है कि भक्ति केवल भगवान की करनी चाहिए देवताओं की नहीं श्री कृष्ण ने कहा है कि”तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की ही शरण में जा उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शांति को तथा सनातन परमधाम को प्राप्त होगा”
भगवत गीता में मनुष्य का सबसे बड़ा सुख क्या बताया गया है?
मनुष्य का सबसे बड़ा सुख गीता में निरोगी काया को बताया गया है यही मनुष्य का सबसे बड़ा सुख है ओर सुख सिर्फ मृग मरीचिका है और कुछ नहीं वह सिर्फ एक भ्रम है जिसको मनुष्य सुख मानता है।
निष्कर्ष
जो भी मनुष्य भगवत गीता की 18 बातों को अपनाकर अपने जीवन में उतारता है तो वह हमेशा के लिए वासना से, दुखों से, क्रोध से, ईर्ष्या से, मोह से, लोभ से, लालच आदि से दूर हो जाता है यह एक प्रकार के बंधन है जिन से मनुष्य मुक्त हो जाता है भगवत गीता इन सब चीजों को ही सिखाती है गीता आत्मा के स्वरूप को पहचानने पर जोर देती है।
Q.1 गीता में कितने अध्याय हैं?
गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं और इसका दूसरा नाम गीतोपनिषद है।
Q.2 भगवत गीता में सबसे बड़ा सुख किसको बताया गया है?
भगवत गीता में सबसे बड़ा सुख निरोगी काया को बताया गया है यदि स्वास्थ्य अच्छा है तो आपकी आत्मा प्रसन्न रहती है और यदि आपकी आत्मा प्रसन्न है तो आपका मन सत्कर्म में जरूर लगता है।