B.R. Ambedkar Short Notes And MCQ || READ NOW

B.R. Ambedkar

B.R. Ambedkar (1891–1956) केवल भारत के संविधान निर्माता ही नहीं, बल्कि एक महान समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री, विधिवेत्ता और सामाजिक सुधारक भी थे।
उनका पूरा जीवन जाति-आधारित भेदभाव, अस्पृश्यता, सामाजिक अन्याय और आर्थिक शोषण के खिलाफ संघर्ष में बीता।
अंबेडकर का समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण मूलतः समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व (Equality, Liberty, Fraternity) पर आधारित

B.R. Ambedkar

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अंबेडकर का समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण

डॉ. अंबेडकर के विचार निम्न बिंदुओं में समझे जा सकते हैं:

(a) जाति व्यवस्था की आलोचना

अंबेडकर के अनुसार जाति (Caste) केवल एक सामाजिक वर्गीकरण नहीं, बल्कि सामाजिक अन्याय की जड़ है।

जाति व्यवस्था हिंदू धर्म में जन्म-आधारित भेदभाव को स्थायी बनाती है और सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility) को रोकती है।

उन्होंने “Annihilation of Caste” (जाति का उन्मूलन) में कहा कि जाति व्यवस्था समाप्त किए बिना भारत में लोकतंत्र असंभव है।

(b) अस्पृश्यता के विरुद्ध संघर्ष

अंबेडकर ने दलितों को “Depressed Classes” और बाद में “Scheduled Castes” कहा।

उनका मानना था कि अस्पृश्यता मानवता पर कलंक है और यह सामाजिक एवं धार्मिक दोनों स्तरों पर मिटाई जानी चाहिए।

महाड़ सत्याग्रह (1927) और नासिक मंदिर प्रवेश आंदोलन (1930) इसी संघर्ष का हिस्सा थे।

(c) सामाजिक न्याय की अवधारणा

अंबेडकर के अनुसार सामाजिक न्याय का अर्थ है— सभी को समान अवसर, बिना किसी भेदभाव के।

उन्होंने संविधान में मौलिक अधिकार और समानता के प्रावधान शामिल कराए।

आरक्षण नीति को उन्होंने सामाजिक असमानता को दूर करने का आवश्यक साधन माना।

(d) धर्म और सामाजिक परिवर्तन

अंबेडकर का मानना था कि धर्म का उद्देश्य मानव कल्याण और नैतिकता होना चाहिए, न कि भेदभाव।

14 अक्टूबर 1956 को उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया क्योंकि यह समानता और करुणा का धर्म है।

बौद्ध धर्म में “त्रिरत्न” (बुद्ध, धम्म, संघ) और “अष्टांगिक मार्ग” को उन्होंने सामाजिक नैतिकता का आधार माना।

(e) लोकतंत्र की परिभाषा

अंबेडकर के अनुसार लोकतंत्र केवल शासन प्रणाली नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका है।

उन्होंने लोकतंत्र के तीन स्तंभ बताए: समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व।

यदि आर्थिक और सामाजिक समानता नहीं होगी, तो राजनीतिक लोकतंत्र भी टिकाऊ नहीं रहेगा।

(f) आर्थिक विचार

अंबेडकर का आर्थिक दृष्टिकोण समाजवादी और मानवीय था।

उन्होंने भूमिहीनों को भूमि का अधिकार, श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा और उद्योगों का सरकारी नियंत्रण आवश्यक बताया।

उनका मानना था कि आर्थिक शोषण भी उतना ही खतरनाक है जितना सामाजिक भेदभाव।


अंबेडकर के प्रमुख सामाजिक आंदोलन

(1) महाड़ सत्याग्रह (1927)

उद्देश्य: अछूतों को सार्वजनिक जलस्रोतों से पानी पीने का अधिकार दिलाना।

परिणाम: यह भारत में अस्पृश्यता-विरोधी आंदोलन का ऐतिहासिक मोड़ था।

(2) काला पानी कानून विरोध

उन्होंने ऐसे कानूनों का विरोध किया जो श्रमिकों और कमजोर वर्गों का शोषण करते थे।

(3) नासिक मंदिर प्रवेश आंदोलन (1930)

उद्देश्य: दलितों को मंदिर में प्रवेश का अधिकार दिलाना।

परिणाम: धार्मिक भेदभाव के खिलाफ जनजागरण बढ़ा।

(4) पूना पैक्ट (1932)

ब्रिटिश सरकार ने पृथक निर्वाचक मंडल (Separate Electorate) का प्रस्ताव दिया, पर गांधीजी और अंबेडकर के बीच समझौते से अनुसूचित जातियों को सामान्य निर्वाचन क्षेत्रों में आरक्षण मिला।

(5) बौद्ध धर्म दीक्षा (1956)

अंबेडकर ने लगभग 5 लाख अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया, जिससे भारत में नव-बौद्ध आंदोलन शुरू हुआ।


अंबेडकर के विचारों की विशेषताएँ

मानवाधिकार पर जोर – सभी मनुष्यों के लिए समान अधिकार और अवसर।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण – समाज को बदलने के लिए तार्किक और वैज्ञानिक सोच।

संवैधानिक सुधार – सामाजिक न्याय को कानूनी ढांचे में शामिल करना।

शिक्षा का महत्व – शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन का मुख्य साधन मानना।

महिला अधिकार – महिलाओं की समानता और सुरक्षा के लिए क़ानून बनाना।




अंबेडकर की समाजशास्त्रीय प्रासंगिकता आज

जाति-आधारित भेदभाव आज भी विभिन्न रूपों में मौजूद है।

आरक्षण, सामाजिक न्याय, और मानवाधिकार के मुद्दों पर अंबेडकर का दृष्टिकोण आज भी मार्गदर्शक है।

उनके विचार लोकतंत्र को सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक रूप से भी मज़बूत बनाने की प्रेरणा देते हैं।


B.R. Ambedkar की प्रमुख किताबें और प्रकाशन वर्ष

  1. Annihilation of Caste – 1936
  2. The Problem of the Rupee: Its Origin and Its Solution – 1923
  3. Who Were the Shudras? – 1946
  4. The Untouchables: Who Were They and Why They Became Untouchables? – 1948
  5. Thoughts on Linguistic States – 1955
  6. Buddha and His Dhamma – 1957 (मरणोपरांत प्रकाशित)
  7. States and Minorities – 1947
  8. What Congress and Gandhi Have Done to the Untouchables – 1945
  9. Philosophy of Hinduism – 1948 (अपूर्ण पांडुलिपि)
  10. Riddles in Hinduism – 1987 (मरणोपरांत प्रकाशित)

🔟 B.R. Ambedkar के 10 महत्वपूर्ण समाजशास्त्रीय बिंदु

  1. जाति का उन्मूलन – सामाजिक समानता के लिए जाति व्यवस्था समाप्त करना ज़रूरी है।
  2. सामाजिक न्याय – सभी वर्गों को समान अवसर, विशेषकर वंचित और दलित समाज को।
  3. शिक्षा का महत्व – शिक्षा को सामाजिक और आर्थिक उन्नति का सबसे बड़ा हथियार मानना।
  4. महिला सशक्तिकरण – महिलाओं की समानता और अधिकार सुनिश्चित करना।
  5. धर्म की भूमिका – धर्म को भेदभाव के बजाय मानव कल्याण का साधन बनाना।
  6. संवैधानिक लोकतंत्र – लोकतंत्र को राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक स्तर पर लागू करना।
  7. आरक्षण नीति – वंचित वर्गों को समान अवसर देने का व्यावहारिक उपाय।
  8. बौद्ध धर्म अपनाना – समानता, करुणा और तर्क पर आधारित जीवन दर्शन।
  9. आर्थिक सुधार – श्रमिकों के अधिकार और भूमि सुधार पर जोर।
  10. मानवाधिकार और स्वतंत्रता – हर व्यक्ति की गरिमा, स्वतंत्रता और सम्मान को सर्वोपरि मानना।

B.R. Ambedkar – MCQ (Hindi)

B.R. Ambedkar – MCQ (Hindi)

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1) ‘Annihilation of Caste’ किस वर्ष प्रकाशित हुई?
2) डॉ. अंबेडकर ने किस धर्म को अपनाया?
3) ‘The Problem of the Rupee’ का प्रकाशन वर्ष क्या है?
4) ‘Who Were the Shudras?’ किस वर्ष प्रकाशित हुई?
5) कौन-सा आंदोलन सार्वजनिक जलस्रोतों पर दलितों के अधिकार से जुड़ा था?
6) ‘Buddha and His Dhamma’ का प्रकाशन?
7) अंबेडकर द्वारा अपनाए बौद्ध धर्म में किस पर विशेष बल है?
8) ‘पूना पैक्ट’ किस वर्ष हुआ?
9) ‘Riddles in Hinduism’ के बारे में सही कथन चुनें:
10) लोकतंत्र के तीन स्तंभ अंबेडकर के अनुसार क्या हैं?

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